जानें, यूपी में किसी बीमारी से बच्‍चों को मिली इस साल बड़ी राहत

जानें, यूपी में किसी बीमारी से बच्‍चों को मिली इस साल बड़ी राहत

सेहतराग टीम

पिछले साल तक यूपी के पूर्वी हिस्‍से खासकर गोरखपुर से बच्‍चों की बड़ी संख्‍या में मौत की खबरें लोग भूले नहीं होंगे। धान की खेती के सीजन में पूरे पूर्वी उत्‍तर प्रदेश में बड़ी संख्‍या में बच्‍चे जापानी इंसेफलाइटिस ( दिमागी बुखार, जेई) और एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (चमकी बुखार, एईएस) से ग्रसित होकर असमय मौत के आगोश में सो रहे थे। इस साल धान की फसल का आधा समय निकल चुका है और अभी तक इन दोनों बुखारों के महामारी की तरह फैलने का कोई संकेत नहीं है। निश्चित रूप से इसके लिए राज्‍य सरकार द्वारा उठाए गए कदमों का बहुत बड़ा हाथ है और इसलिए यूपी की योगी आदित्‍यनाथ सरकार इसके लिए अपनी पीठ थपथपा रही है। योगी सरकार ने इंसेफेलाइटिस से मौत की संख्‍या में भारी गिरावट का दावा किया है।

उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के प्रमुख सचिव देवेश चतुर्वेदी के अनुसार इस साल 27 अगस्त तक एईएस के कारण 34 लोगों की मौत हुई है जबकि इसके 890 रोगी अस्पतालों में भर्ती किए गए हैं। इस अवधि में जापानी इंसेफेलाइटिस के कारण सिर्फ चार मौतें हुई हैं। इसके उलट पिछले कुछ साल के आंकड़े डरावने हैं। वर्ष 2016 में एईएस के 3911 मरीज भर्ती किए गए जिनमें से 641 की मौत हो गई थी जबकि 2017 में मरीजों की तादाद 4724 हो गई, जिनमें से 655 की मृत्यु हुई थी। वर्ष 2018 से इन आंकड़ों में गिरावट शुरू हुई। पिछले साल 3077 मरीज भर्ती हुए और मौत का आंकड़ा 248 रहा।
इसी प्रकार जापानी इंसेफेलाइटिस के कारण वर्ष 2016 में 74 लोगों की मौत हुई थी। वर्ष 2017 में भी मौतों का यही आंकड़ा रहा। वर्ष 2018 में जेई के रोगियों की संख्या और मृतकों की तादाद घटी। पिछले साल जेई की वजह से 30 लोगों की मौत हुई। इस साल 27 अगस्त तक इस बीमारी से 4 लोगों की मृत्यु हुई है।

पूर्वांचल में इंसेफेलाइटिस उन्‍मूलन की दिशा में प्रयास कर रहे बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्‍टर आर.एन. सिंह ने जेई और एईएस से मौत में कमी को एक बड़ी उपलब्धि बताते हुए कहा कि सरकार ने पिछले साल रोकथाम को प्राथमिकता देकर ‘दस्‍तक’ अभियान चलाया जिससे महामारी को रोकने में कामयाबी मिली है।

उन्‍होंने कहा कि उत्‍तर प्रदेश में इसे नियंत्रित कर लिया गया मगर बिहार, पश्चिम बंगाल, असम सहित देश के कुल 17 प्रदेशों में इसे काबू करने के लिए बड़े स्‍तर पर कदम उठाने और केंद्रीय स्‍तर पर अभियान चलाने की जरूरत है।

सिंह ने कहा कि ‘नेशनल प्रोग्राम फॉर प्रिवेंशन एण्‍ड कंट्रोल ऑफ इंसेफेलाइटिस’ वर्ष 2014 में ही बन चुका है, लेकिन इसे अब तक लागू नहीं किया गया है। अगर इसे लागू किया गया होता तो बिहार में पिछली मई-जून में इंसेफेलाइटिस की वजह से 130 से ज्‍यादा बच्‍चों की मौत नहीं होती। उन्होंने कहा कि देश से पोलियो और चेचक का उन्‍मूलन सिर्फ इसलिए हो सका क्‍योंकि उनके लिए राष्‍ट्रीय कार्यक्रम लागू किया गया था। इंसेफेलाइटिस को अगर पूरे देश से खत्‍म करना है तो राष्‍ट्रीय कार्यक्रम लागू करना होगा।

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